वह रात ही से रोज़े की नीयत किए बिना रमज़ान की क़ज़ा के रोज़े रखती थी, वह सुबह के समय रोज़े की नीयत करती थी, तो अब उसे क्या करना चाहिएॽ
सामान्य इमामों के निकाट, दिन में नीयत करके आपकी दोस्त का रमज़ान की क़ज़ा के रोज़े रखना मान्य नहीं है। अतः उसके लिए उन दिनों के रोज़ों को दोहराना ज़रूरी है, और उसपर कोई कफ़्फ़ारा अनिवार्य नहीं है। यह रखे हुए रोज़ों को दोहराने का हुक्म; अंतिम वर्ष की क़ज़ा के बारे में है, जिसका समय अभी बाक़ी है। जहाँ तक पिछले बीते हुए वर्षों की क़ज़ा का संबंध है, तो कुछ विद्वानों, जैसे कि शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह, ने यह दृष्टिकोण अपनाया है कि जिस व्यक्ति ने कोई इबादत ग़लत ढंग से की और वह अज्ञानी था, और उसका समय निकल गया : तो उसके लिए उसे दोहराना अनिवार्य नहीं है। यदि आपकी दोस्त इस विचार को अपनाती है तो हम आशा करते हैं कि उसपर कोई पाप नहीं है।
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