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6,41002/शव्वाल/1431 , 11/सितंबर/2010

ज़कातुल फित्र को उसके समय से विलंब करना

प्रश्न: 37990

मैं एक यात्रा में था और ज़कातुल फित्र देना भूल गया, यात्रा सत्ताईसवीं रमज़ान की रात को थी और हम ने अभी तक ज़कातुल फित्र नहीं निकाली है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा एवं गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा दुरूद व सलाम की वर्षा हो अल्लाह के रसूल पर। इसके बाद :

यदि आदमी ज़कातुल फित्र को उसके समय से विलंब कर दे और वह उसे स्मरण है (अर्थात् भूलकर ऐसा नहीं किया है) तो वह गुनाहगार (दोषा) है,और उसके ऊपर अल्लाह से तौबा करना और उसकी क़ज़ा करना अनिवार्य है ; क्योंकि वह एक इबादत है। अत: वह समय निकल जाने के कारण समाप्त नहीं होगी जैसेकि नमाज़ का मामला है,और चूँकि प्रश्न कर्ता महिला के बारे में उल्लेख किया गया है कि वह उसे उसके समय पर निकालना भूल गई थी,इसलिए उस पर कोई गुनाह नहीं है,और उसके ऊपर क़ज़ा करना अनिवार्य है। जहाँ तक उसके ऊपर गुनाह न होने का संबंध है तो यह उन सामान्य प्रमाणों के आधार पर है जो भूलने वाले व्यक्ति से गुनाह को समाप्त कर देते हैं। और जहाँ तक उसके ऊपर क़ज़ा को आवश्यक करने की बात है तो यह उस तर्क के आधार पर है जो पीछे बीत चुका। (अर्थात् वह नमाज़ के समान एक इबादत है जो समय निकल जाने से समाप्त नहीं होती)

और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला (शक्ति का स्रोत) है।

स्रोत

इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति के फतावा (9/372) से।

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