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क्या नफ्ल या फर्ज़ नमाज़ पढ़ने के लिए तवाफ़ को बाधित किया जा सकता है?

प्रश्न: 143261

क्या हतीम के बाहर से तवाफ़ करने के साथ हतीम के अंदर नमाज़ पढ़ सकता है : ज्ञात रहे कि प्रवेश दूसरे छोर से होगा, जो काबा के भीतर नहीं माना जाता है : क्या नमाज़ तवाफ़ को बाधित कर सकती है और क्या ऐसा करना जायज़ है?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हतीम काबा का एक हिस्सा है। इसलिए उसके अंदर से तवाफ़ करना सही (मान्य) नहीं है; क्योंकि तवाफ़ करने वाले को काबा का चक्कर लगाने (उसके गिर्द घूमने) का आदेश दिया गया है अर्थात उसके बाहर से उसके पूरे हिस्से का तवाफ़ करना। इसका वर्णन प्रश्न संख्याः (46597) के उत्तर में किया जा चुका है।

सही मत के अनुसार तवाफ़ के लिए निरंतरता (अर्थात उसे बिना अंतर के लगातार करना) शर्त है। यही मालिकिय्या और हनाबिला का मत है। जबकि मामूली अंतर क्षम्य है, सिवाय इसके कि किसी फर्ज़ नमाज़ के लिए जमाअत खड़ी हो जाए या कोई जनाज़ा उपस्थित हो जाए, तो वह नमाज़ पढ़ेगा फिर अपना तवाफ़ पूरा करेगा। कुछ फुक़हा ने जनाज़ा के कारण तवाफ़ को बाधित करने का विरोध किया है, जबकि उनमें से कुछ फुक़हा ने तवाफ़ को बाधित करना जायज़ कहा है यदि किसी नफ्ल नमाज़ जैसे वित्र या तरावीह की जमाअत खड़ी हो जाए, या किसी मुअक्कदा सुन्नत के छूट जाने का डर हो जैसे कि फज्र की दो रकअतें और उसका तवाफ नफली हो। जहाँ तक फर्ज़ तवाफ़ का संबंध है तो उसे फर्ज़ नमाज़ या जनाज़ा की नमाज़ के लिए ही बाधित किया जा सकता है।

अल-हत्ताब रहिमहुल्लाह ने कहा : फ़र्ज़ तवाफ को फ़र्ज़ नमाज़ के अलावा के लिए बाधित नहीं किया जाएगा। यदि वह वाजिब तवाफ़ में हैं और उसे डर है कि फज्र की नमाज़ के लिए जमाअत खड़ी हो जाएगी और उसकी फज्र की दोनों रकअतें (सुन्नतें) छूट जाएंगी तो वह उसके लिए तवाफ़ को नहीं रोकेगा। हाँ, अशहब के सिमाअ (वर्णन) के अनुसार इसे हल्का समझा गया है और यह अनुमति दी गई है कि वह नफ्ल (स्वेच्छि) तवाफ़ को बाधित कर सकता है यदि वह डरता है कि उसकी फज्र की दोनों रकअतें छूट जाएंगी। चुनाँचे वह फज्र की नमाज़ अदा करेगा और फिर अपने तवाफ को पूरा करेगा।'' ''मवाहिबुल जलील (3/77)'' से उद्धरण समाप्त हुआ।

जिन्होंने निरंतरता की शर्त नहीं लगाई है – जैसे कि शाफेइय्या – उन्होंने बिना कारण (उज़्र) के तवाफ़ को बाधित करना नापसंद किया है, निरंतरता के अनिवार्य होने के बारे में मतभेद को ध्यान में रखते हुए।

''हाशिया क़ल्यूबी व उमैरह'' में उन्होंने कहा: "तवाफ़ में खाना, पीना, थूकना और उंगलियों को चटखाना, उंगलियों में उंगलियाँ डालना और उन्हें अपनी पीठ के पीछे बाँधना, मल या मूत्र रोकने की स्थिति में होना … उसका किसी फर्ज़ किफाया या नफ्ल नमाज़, या तिलावत या शुक्र के सज्दा के लिए उसे बाधित करना नापसंद है, यह सब उस स्थिति में है जबकि कोई उज़्र न हो।'' अंत हुआ।

देखें: अल-मजमू (8/65), अल-मुग़्नी (3/197), मतालिब ऊलिन-नुहा (2/399)।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : ''मस्अला : अगर तवाफ़ के दौरान फर्ज़ नमाज़ के लिए जमाअत खड़ी हो जाए? तो हम कहते हैं कि : विद्वानों ने इस बारे में मतभेद किया है :

कुछ विद्वानों का कहना है कि : यदि वह नफली तवाफ है तो वह उसे रोक देगा और फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ेगा। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः ''अगर नमाज़ खड़ी कर दी जाए, तो फर्ज़ नमाज़ के अलावा कोई अन्य नमाज़ नहीं है।'' और तवाफ़ की उच्चतम स्थिति यह है कि उसे नफ़्ल नमाज़ के साथ मिलाया जाए। अतः यदि फर्ज़ (अनिवार्य) नमाज़ आयोजित की जाए तो वह तवाफ़ बंद करके फर्ज़ नमाज़ पढ़ेगा फिर तवाफ़ पूरा करेगा। लेकिन अगर फर्ज़ तवाफ है तो वह तवाफ़ करना जारी रखेगा, भले ही वह फ़र्ज़ नमाज़ छूट जाए।

दूसरों विद्वानों ने कहा: निरंतरता शर्त नहीं है और उसे बाधित करना औऱ उसके चक्करों के बीच निरंतरता को बाधित करना जायज़ है औऱ इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।

लेकिन हमें पता होना चाहिए कि एक ही इबादत के हिस्सों के बीच निरंतरता ज़रूरी है ताकि वह एक इबादत कहलाए, सिवाय इसके कि कोई प्रमाण हो जो उनके बीच अंतर करने की अनुमति को दर्शाता हो। इस बारे में राजेह कथन यह है कि अगर फर्ज़ नमाज़ आयोजित की जाने लगे तो वह नमाज़ के बाद उसकी ओर वापस लोटने के इरादे से उसे रोक देगा।

यदि उसने तवाफ़ को रोक दिया – और मान लेते हैं कि उसने हज्रे अस्वद के बराबर होने पर तवाफ़ को रोका है – तो नमाज़ पूरी होने के बाद वह तवाफ़ को उसी स्थान से शुरू करेगा जहाँ उसने तवाफ़ को रोक दिया था या कि वह नए सिरे से तवाफ शुरू करेगा?

इस बारे में विद्वानों के बीच मतभेद है। विद्वानों का प्रसिद्ध मत यह है कि चक्कर को फिर से शुरू करना आवश्यक है, और राजेह (सही) कथन यह है कि इसकी शर्त नहीं है और वह उसी जगह से शुरू करेगा जहाँ उसने तवाफ़ को रोक दिया था। क्योंकि तवाफ़ रोकने से पहले जो कुछ घटित हुआ है वह पर्याप्त था, और जो चीज़ पर्याप्त हो उसे हमारे लिए लौटाना वाजिब नहीं है। क्योंकि अगर हम उसे लौटाना अनिवार्य कर दें, तो हम मनुष्य पर एक ही इबादत को दो बार अनिवार्य कर देंगे, हालाँकि इसका कोई उदाहरण नहीं है।

प्रश्न: क्या जनाज़ा (अंतिम संस्कार) की नमाज़ के लिए तवाफ़ को रोकना (बाधित करना) जायज़ है?

प्रत्यक्ष बात यह है कि हाँ जायज़ है; क्योंकि जनाज़ा की नमाज़ छोटी होती है। इसलिए अंतर ज्यादा नहीं होगा, अतः उसे क्षम्य समझा जाएगा।'' ''अश-शरहुल मुम्ते (7/276)'' से उद्धरण समाप्त हुआ।

साधारण अंतर के बारे में सलफ से जो कुछ आया है : जमील बिन ज़ैद से वर्णति है कि उन्होंने कहाः मैंने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा को देखा कि उन्हों ने एक गर्म दिन में तीन चक्कर तवाफ़ किया। फिर उन्हें गरमी लग गई तो उन्होंने हतीम में प्रवेश किया और बैठ गए, फिर वह बाहर निकले और जो तवाफ़ कर चुके थे उसी को पूरा किया। तथा अता से वर्णित हैः इंसान के लिए आराम करने के लिए तवाफ़ के दौरान बैठने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।

तथा देखें : इब्ने अबी शैबा की ‘अल-मुसन्नफ’ (4/454), इब्ने हज़्म की ‘अल-मुहल्ला’ (5/219).

सारांश यह है किः तवाफ़ में निरंतरता अनिवार्य है, और नमाज़ के लिए तवाफ़ को रोका नहीं जाएगा सिवाय इसके कि वह फर्ज़ नमाज़ या जनाज़ा की नमाज़ हो। तथा वित्र की रकअत में उस व्यक्ति को अनुमति दी जा सकती है जिसे उसके छूटने का डर हो और उसका तवाफ नफली हो; क्योंकि यह एक साधारण मामला है।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत

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