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92201/रबीउस सानी/1445 , 16/अक्तूबर/2023

कब्र में लह्द और शक़्क़ की विधि।

प्रश्न: 103880

क्या शक़्क़ (संदूक़ी-क़ब्र) में दफ़नाए गए मृतक के चेहरे पर सीधे मिट्टी डालना जायज़ हैॽ यदि हम दफनाने की इस विधि को अपनाने के लिए मजबूर हैं, तो ऐसा करने (अर्थात मृतक को संदूक़ी-क़ब्र में दफनाने) का सही तरीक़ा क्या हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा एवं गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा दुरूद व सलाम की वर्षा हो अल्लाह के रसूल पर। इसके बाद :

पहला :

शक़्क़ (संदूक़ी-क़ब्र) की विधि : यह है कि मृतक के आकार के अनुसार कब्र के बीच में एक गड्ढा खोदा जाता है, और उसके किनारों को मिट्टी की ईंटों से बनाया जाता है ताकि वह मृतक पर (गिरकर) मिल न जाए, और उसमें मृतक को उसके दाहिने पहलू पर क़िबले की ओर मुख करके रख दिया जाता है, फिर इस गड्ढे को पत्थरों आदि से छत के रूप में ढक दिया जाता है और छत को थोड़ा ऊपर उठा दिया जाता है ताकि वह मृत व्यक्ति को न छुए, फिर उसपर मिट्टी डाल दिया जाता है।

लह्द (बग़ली क़ब्र) की विधि : यह है कि क़ब्र की दीवार के नीचे क़िबला के सबसे करीब की तरफ एक जगह खोदी जाती है, जिसमें मृत व्यक्ति को क़िबला की ओर मुँह करके दाहिनी करवट रख दिया जाता है, फिर इस गड्ढे को मृतक की पीठ के पीछे मिट्टी की ईंटों से बंद कर दिया जाता है, फिर मिट्टी डाल दिया जाता है।

देखें : डॉ. अब्दुल्लाह अस-सुहैबानी द्वारा लिखित “अहकामुल-मक़ाबिर फ़िश-शरीअह अल-इस्लामियह” (पृष्ठ 30)।

विद्वानों की सर्वसहमति के अनुसार लह्द और शक़्क़ दोनों जायज़ हैं, लेकिन लह्द बेहतर है, क्योंकि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की क़ब्र के साथ यही किया गया था। मुस्लिम (हदीस संख्या : 966) ने वर्णन किया है कि सा'द बिन अबी वक़्क़ास रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी उस बीमारी के दौरान जिसमें उनकी मृत्यु हुई, कहा : मेरे लिए लह्द तैयार करना और मेरे ऊपर अच्छे ढंग से ईंटें रखना, जैसा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (की क़ब्र) के साथ किया गया था।”

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने “अल-मुगनी” (2/188) में कहा : “सुन्नत यह है कि मृतक की क़ब्र को लह्द (बग़ली) बनाया जाए, जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र के साथ किया गया था।” उद्धरण समाप्त हुआ।

नववी रहिमहुल्लाह ने “अल-मजमू'” (2/252) में कहा : “विद्वान इस बात पर एकमत हैं कि लहद में दफनाना और शक्क में दफनाना दोनों जायज़ हैं, लेकिन अगर ज़मीन ठोस (स्थिर) हो, उसकी मिट्टी ढहने वाली न हो, तो लहद बेहतर है, लेकिन अगर मिट्टी नरम (अस्थिर) है और ढह जाने वाली है तो शक़्क़ बेहतर है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने “अश-शर्ह अल-मुम्ते'” (5/360) में कहा : “लेकिन अगर शक़्क़ की ज़रूरत है, तो इसमें कोई हर्ज की बात नहीं है। शक़्क़ की आवश्यकता उस वक़्त होती है, जब ज़मीन रेतीली हो, क्योंकि उसमें लह्द का बनाना संभव नहीं है, क्योंकि जब लह्द को रेत में बनाया जाएगा तो वह ढह जाएगा। इसलिए एक गड्ढा खोदा जाएगा, फिर उसके बीच में खोदा जाएगा फिर जिस गड्ढे में मृत व्यक्ति को रखा जाता है उसके दोनों किनारों पर कच्ची ईँटें रख दी जाएँगी ताकि रेत न गिरे, फिर मृतक को इन ईँटों के बीच रखा जाएगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।   

इसके आधार पर, मृतक के चेहरे या शरीर पर सीधे मिट्टी नहीं डाली जाएगी, चाहे क़ब्र लह्द हो या शक़्क़, क्योंकि लह्द में मृतक उस गड्ढे में होता है, जो क़ब्र की दीवार में खोदा जाता है। इसलिए उसके ऊपर मिट्टी नहीं डाली जाती है। जबकि शक़्क़ में मिट्टी शक़्क़ की छत के ऊपर डाली जाती है, वह सीधे मृतक के ऊपर नहीं डाली जाती है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

संदर्भ

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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