उत्तर :
हर प्रकारकी प्रशंसा औरगुणगान केवल अल्लाहके लिए योग्य है।
ऐसा पोशाकपहनना जायज़ नहींहै जिस पर जीवधारीऔर चेतन प्राणियोंकी कोई चित्र (छवि)उत्कीर्ण हो। क्योंकिइस प्रकार की छवियाँफ़रिश्तों (स्वर्गदूतों)को घर में प्रवेशकरने से रोकतीहैं, इस कारण किइस में अल्लाहतआला की रचना काअनुकरण और बराबरीकरना पाया जाताहै। और इस कारणभी कि अल्लाह केनबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने चित्रों कोमिटाने का आदेशजारी किया है।
इब्ने बाज़रहिमहुल्लाह फरमातेहैं :
“मुसलमान के लिएजायज़ नहीं हैकि वह ऐसे पोशाकमें नमाज़ पढ़ेजिन में चित्रऔर छवियाँ बनीहुई हों, चाहे वेछवियाँ (तस्वीरें)मनुष्य की होंया अन्य चेतन प्राणियोंऔर जीवधारियोंकी हों जैसे- घोड़े,या ऊँट या पक्षि।”
अल्लाहके रसूल सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फ़रमाया : (किसीभी चित्र को न छोड़नामगर उसे मिटा देना)एक दूसरे स्थानपर आप ने फरमाया: (चित्र बनाने वालोंको कि़यामत केदिन अज़ाब (यातना)दिया जाएगा,और उन से कहा जाएगा कि : जिन तस्वीरोंको तुम ने बनायाहै उन में जान डालो)और इसी तरह जब अल्लाहके नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने आयशा रजियल्लाहुअन्हा के द्वारपर एक पर्दा देखा,जिसमें तस्वीरेंबनी थीं तो आप नेउसको फ़ाड़ करटुकड़े-टुकड़ेकर दिया, और आपकाचेहरा बदल गया।अतः किसी भी मुसलमानपुरूष और महिलाके लिए जायज़ नहींहै कि वह चैतन प्राणियोंके चित्रों वालेपोशाक पहने,न तो क़मीस,न चादर,न अमामा(पगड़ी) और न इसकेअलावा कोई अन्यकपड़ा पहने,और न ही उसे घरोंका पर्दा बनाए,ये सारी चीज़ेंवर्जित और निषिद्धहैं।'' शैख इब्नेबाज़ की साइट सेसमाप्त हुआ। http://www.binbaz.org.sa/mat/14740
शैख इब्नेउसैमीन रहिमहुल्लाहने फरमाया :
“मनुष्य के लिएजायज़ नहीं हैकि वह कोई ऐसा कपड़ापहने जिसमें किसीमानव या जानवरकी तस्वीर हो।इसी तरह उसके लिएगुत्रा या शिमाग़या इस जैसी कोईअन्य चीज पहननाजायज़ नहीं हैजिसमें किसी मनुष्यया जानवर का चित्रहो। क्योंकि नबीसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम से प्रमाणितहै कि आपने फरमाया:
‘‘निःसन्देहस्वर्गदूत उस घरमें प्रवेश नहींकरते हैं जिस मेंकोई चित्र हो।” (सहीह बुखारी औरसहीह मुस्लिम)।
“मजमूओ फतावा वरसाइल अल-उसैमीन” (2/274) से समाप्त हुआ।
लेकिन अगरपोशाक में बनेचित्र और बेलबूटेनिर्जीव के हैं: तो उनके पहननेमें कोई आपत्तिकी बात नहीं है।
इफ्ता कीस्थायी समिति केविद्वानों ने कहा:
“चित्र में वर्जन(निषेध) का आधारउसका चैतन प्राणियोंके चित्र का होनाहै, चाहे वह अंकितहो या दीवारोंया कपड़ों परचित्रित हो,या बुनी हुई हो,और चाहे वह रीशा(पक्षियों के परों)से बनी हो या क़लमसे या मशीन के द्वारा, और चाहे यह चित्रअपनी प्रकृति परहो या उसमें कल्पनादाखिल हो गई हो,चुनाँचे वह छोटीकर दी गई हो या बड़ीकर दी गयी हो यासुन्दर कर दी गयीहो या विकृत करदी गयी हो,या वह कंकालकी प्रतिनिधित्वकरने वाली लाइनोंके रूप में कर दीगयी हो। अतः उनचित्रों के निषिद्धहोने का आधार उनकेचैतन प्राणियोंके चित्रों काहोना है।’’
“स्थायी समितिके फतावा ”(1/ 696) से समाप्त हुआ।
तथा उनकायह भी कहना है कि:
“निर्जीव दृश्योंजैसे पहाड़ों,पेड़ों,घाटियों,नदियों और समुद्रोंके चित्र बनानेमें कोई हानि नहींहै, क्योंकि उसके अंदर कोई निषेध(वजर्न) नहीं है।”
“स्थायी समितिके फतावा” (1/315) से समाप्त हुआ।