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सूद पर आधारित बैंकों में पैसे रखना

प्रश्न: 22392

क्या मैं बैंक में अपने पैसे केवल लेन देन के लिए रख सकता हूँ यदि मैं जमा की गई राशि पर कोई सूद लेने से इनकार कर दूँ। लेकिन, निश्चित रूप से, बैंक इस सूदी राशि के लाभ को अपने लिए ले लेगा।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सूद का लेन देन करने वाले बैंकों में पैसा जमा करना जायज़ नहीं है, और मुसलमान ऐसा नहीं करेगा सिवाय इसके कि वह ऐसा करने पर मजबूर हो। और यह तीन शर्तों के साथ ही हो सकता है :

1- इसकी ज़रूरत हो, और यह इस प्रकार कि उसे धन को सुरक्षित रखने के लिए इन बैंकों के अलावा कोई अन्य जगह न मिले। अगर इस सूद पर आधारित बैंक के अलावा कोई अन्य जगह मौजूद है जिसमें धन को सुरक्षित किया जा सकता है तो सूद का लेन देन करनेवाले बैंक में धन को रखना जायज़ नहीं है।

2- बैंकों का कारोबार शत प्रतिशत सूद पर आधारित न हो, अगर बैंको का लेनदेन सौ प्रतिशत सूद पर आधारित है तो उसमें बिल्कुल ही पैसा जमा करना जायज़ नहीं है, इसलिए कि अगर इस स्थिति में आप उसमें पैसा जमा करेंगे तो निश्चित रूप से, आप सूद पर बैंक की सहायता करने वाले होंगें, हालांकि सूद पर उसकी मदद करना जायज़ नहीं है।

3- पैसा जमा करनेवाला लाभ न ले, अगर उसने लाभ ले लिया तो यह सूद हो गया, और सूद क़ुर्आन व हदीसे और मुसलमानों की सर्व सहमति के साथ हराम (निषिद्ध) है।

जहाँ तक प्रश्न करने वाले का यह कहना है कि अगर वह लाभ नहीं लेगा तो स्वयं बैंक उसे ले लेगा, तो यह लाभ नहीं है, बल्कि यह निषिद्ध व्याज है और यह मूलतः बैंक का है, और जमाकर्ता के लिए इसमें से कुछ भी लेने का अधिकार नहीं है, क्योंकि अल्लाह तआला ने सूद को छोड़ने का आदेश दिया है, जैसा कि उसका फरमान है :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَذَرُوا مَا بَقِيَ مِنْ الرِّبَا إِنْ كُنتُمْ مُؤْمِنِينَ [البقرة : 278]

“ऐ ईमान वालो ! अल्लाह तआला से डरो और जो व्याज बाक़ी रह गया है वह छोड़ दो यदि तुम सच्चे ईमान वाले हो।” (सूरतुल बक़रा : 278)

तथा सूद लेनेवाले को अपने इस कथन के द्वारा धमकी दी है :

فَإِنْ لَمْ تَفْعَلُوا فَأْذَنُوا بِحَرْبٍ مِنْ اللَّهِ وَرَسُولِهِ [البقرة :279]

“और अगर ऐसा नहीं करते तो अल्लाह तआला से और उसके रसूल से लड़ने के लिए तैयार हो जाओ।” (सूरतुल बक़रा : 279)

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इन धनों को बैंक में जमा करना शरई अर्थों में जमा करना नहीं है, क्योंकि शरीअत के दृष्टिकोण से पैसा जमा करना यह है कि आप उसे अपना धन दें और वह उसी तरह उसके पास अमानत के तौर पर बाक़ी रहे उसमें वह कोई हस्तक्षेप न करे, लेकिन जिसमें बैंक हेर फेर करता है वह शरीअत के अर्थ में क़र्ज़ है, जमा करना नहीं है। धर्मशास्त्रियों ने इस बात को स्पष्ट रूप से वर्णन किया है कि यदि जमाकर्ता ने उस व्यक्ति को जिसके पास धन जमा किया गया है उसमें तसर्रूफ करने की अनुमति प्रदान कर दी है तो इसकी वजह से वह क़र्ज़ हो जायेगा। (इसलिए उस पर वृद्धि करना सूद होगा)।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है। तथा अल्लाह तआला हमारे ईश्दूत मुहम्मद पर दया और शांति अवतरित करे।

शैख इब्ने उसैमीन का फतावा मनारूल इस्लाम 2/433-440 देखें।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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