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आदमी का अपनी पत्नी को दफनाने का हुक्म

प्रश्न: 205258

क्या आदमी के लिए अपनी मृत पत्नी को दफनाना जायज़ है? और क्या यह बात वर्णित है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी एक पत्नी को दफनाया था?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

जी हाँ, पति के लिए अपनी पत्नी को स्वयं दफन करना जायज़ है, जिस तरह कि उसके लिए उसके अलावा अन्य औरतों मो दफनाना जायज़ है, बल्कि यह अधिक प्राथमिकता रखता है। लेकिन इस र्शत के साथ कि उसने उस रात में संभोग न किया हो, नहीं तो उसके लिए उसे दफन करना जायज़ नहीं होगा। बल्कि उसके अलावा अन्य व्यक्ति, उपर्युक्त शर्त के साथ, उसे दफन करने का अधिक योग्य होगा, चाहे वह कोई पराया व्यक्ति ही क्यों न हो। इसका प्रमाण अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने फरमाया : ''हम पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की एक लड़की के अंतिम संस्कार (जनाज़ा) में उपस्थित हुए, वह कहते हैं : और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ब्र पर बैठे हुए थे। वह कहते हैं कि : मैं ने देखा कि आपकी दोनों आँखों से आँसू बह रहे थे। वह कहते हैं कि आप ने फरमाया : ''क्या तुम में से कोई ऐसा आदमी है जिसने आज रात संभोग नहीं किया है?'' तो अबू तल्हा ने कहा : मैं। आप ने फरमाया : ''तो तुम उतरो।'' वह कहते हैं: चुनाँचे वह उनकी क़ब्र में उतरे।''

इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1285) ने रिवायत किया है। देखें: (अहकामुल जनाइज़ लिश्शैख अल्बानी, मुद्दा : 99).

यह बात वर्णित नहीं है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी एक पत्नी को दफन किया था, जबकि खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के अलावा सब की सब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बाद मृत्यु पाई थीं।

किंतु आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से ऐसा प्रमाणित है जो उसकी वैद्धता को दर्शाता है, वह कहती हैं : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बक़ीअ से वापस हुए तो मुझे पाया कि मैं अपने सिर में दर्द महसूस कर रही हूँ, और मैं कह रही थी : हाय मेरा सिर! तो आप ने फरमाया : बल्कि मैं ऐ आयशा, हाय मेरा सिर।'' फिर आप ने फरमाया : ''यदि तू मुझसे पहले मर जाती तो तेरा क्या नुक़सान होता, तो में तुझे गुस्ल देता, तुझे कफन पहनाता, तुझ पर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ता और तुझे दफन कर देता।'' इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1565) ने रिवायत है, और अल्बानी ने इसे अहकामुल जनाइज़ (पृष्ठ : 50) में सहीह कहा है। और इसका मूल अंश सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में है।

तथा हम आदमी के अपनी पत्नी को दफन करने की वैधता के बारे में किसी भी विद्वान का कोई मतभेद या इख्तिलाफ नहीं जानते हैं।

देखें : शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह की किताब ''अहकामुल जनाइज़'' (147-149).

स्रोत

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