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नमाज़ी प्रति रकअत में दो सज्दे क्यों करता है ॽ

प्रश्न: 159360

जब मैं बच्चा था तो मुझसे बताया गया था कि जब अल्लाह ने इब्लीस को जन्नत से निकाल दिया और जब फरिश्तों ने अल्लाह के सख्त क्रोध को देखा तो वे दुबारा सज्दे में गिर गए, इसी कारण हम नमाज़ में दो बार सज्दा करते हैं, तो क्या इस में कोई सच्चाई है ॽ मैं इसका कोई हवाला (स्रोत) ढूंढ़ने में असमर्थ हूँ, क्या आप कृपया इसका स्पष्टीकरण कर सकते हैं ॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसाऔर गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

यह बात अशुद्ध है, औरइसका उल्लेख करना और इसे दूसरों से वर्णन करना जाइज़ नहीं है, जिसके कई कारण हैं :

सर्व प्रथम: यह एक ऐसादावा है जिसका कोई प्रमाण नहीं है, और क़ुरआन की व्याख्या की किताबें पर्याप्त और प्रचलितहैं उनके किसी एक लेखक ने भी इस बात का उल्लेख नहीं किया है।

दूसरा:

अल्लाह तआला ने अपनीकिताब -क़ुरआन- में आदम को सज्दा करने के केवल एक आदेश का उल्लेख किया है, फिर इस बातकी सूचना दी है कि इब्लीस के अलावा सभी फरिश्तों ने सज्दा किया, वह जिन्नों में से था उसने अपने पालनहार के आदेश का उल्लंघनकिया, इनकार किया और घमण्डका प्रदर्शन किया, और इसी पर आज़माइश (परीक्षा) संपन्न होगई। अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَإِذْقُلْنَا لِلْمَلائِكَةِ اسْجُدُوا لآدَمَ فَسَجَدُوا إِلا إِبْلِيسَ أَبَى وَاسْتَكْبَرَوَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ [البقرة :34]

“और जब हम ने फरिश्तोंसे कहा कि तुम आदम को सज्दा करो तो इब्लीस के सिवा सब ने सज्दा किया। उस ने इनकार कर दिया और घमण्ड का प्रदर्शन कियाऔर काफिरों (नास्तिकों) में से हो गया।” (सूरतुल बकरा : 34)

तथा अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَإِذْقُلْنَا لِلْمَلائِكَةِ اسْجُدُوا لآدَمَ فَسَجَدُوا إِلا إِبْلِيسَ كَانَ مِنَالْجِنِّ فَفَسَقَ عَنْ أَمْرِ رَبِّهِ[الكهف: 50]

“और जब हम ने फरिश्तोंसे कहा कि तुम आदम को सज्दा करो, तो इब्लीस के सिवा सब ने सज्दा किया, वह जिन्नों मेंसे था, उस ने अपने पालनहार के आदेश की अवहेलना की।” (सूरतुल कहफ : 50)

तीसरा:

फरिश्तों का सज्दा करनाआदम अलैहिस्सलाम के लिए थाः आदम को सज्दा करो जहाँ तक नमाज़ के अंदर हमारे सज्दाकरने का संबंध है तो वह अल्लाह के लिए है, और नमाज़ी के अपनी नमाज़के अंदर सज्दा करने का, फरिश्तों के आदम के लिए सज्दा करने से कोई संबंध नहीं है।

चौथा:

क़ुरआन और सुन्नत मेंकहीं यह बात वर्णित नहीं है कि जब इब्लीस ने आदम को सज्दा करने से इनकार कर दिया तोअल्लाह तआला बहुत क्रोधित हुआ जिस से फरिश्ते घबरा गए। अतः इस अवस्था में इस क्रोधको अल्लाह से संबंधित करना जाइज़ नहीं है, तथा बिना किसी शुद्धप्रमाण के इस का दावा करना भी जाइज़ नहीं है।

यह बात ज्ञात रहनी चाहिएकि अल्लाह तआला ने बिना ज्ञान के अपने ऊपर और अपने धर्म के बारे में कोई बात कहना हरामकर दिया है, अल्लाह ने फरमाया :

إِنَّمَا يَأْمُرُكُمْ بِالسُّوءِ وَالْفَحْشَاءِ وَأَنْ تَقُولُوا عَلَىاللَّهِ مَا لا تَعْلَمُونَ[البقرة: 168]

“वह तुम्हें केवल बुराईऔर बेहयाई (अश्लीलता) और अल्लाह तआला पर उन बातों के कहने का हुक्म देता है जिन कातुम्हें ज्ञान नहीं।” (सूरतुल बक़रा : 168).

तथा फरमाया:

قُلْإِنَّمَا حَرَّمَ رَبِّيَ الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ وَالْإِثْمَوَالْبَغْيَ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَأَنْ تُشْرِكُوا بِاللَّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ سُلْطَانًا وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ[الأعراف: 33]

“आप कह दीजिए कि अलबत्तामेरे रब ने सिर्फ हराम किया है उन तमाम बुरी बातों को जो स्पष्ट हैं और जो छुपी हैंऔर हर पाप की बात को और ना-हक़ किसी पर अत्याचार करने को और इस बात को कि तुम अल्लाहके साथ किसी ऐसी चीज़ को शरीक ठहराओ जिस की अल्लाह ने कोई सनद नहीं उतारी और इस बातको कि तुम लोग अल्लाह के ज़िम्मे ऐसी बात लगाओ जिस को तुम नहीं जानते।” (सूरतुल आराफ :33).

तथा दारमी (हदीस संख्या: 174) ने अबू मूसा रज़ियल्लाहुअन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने अपने खुत्बा (भाषण) में फरमाया : “जिस व्यक्ति को कोई ज्ञानप्राप्त हो तो वह दूसरे लोगों को वह ज्ञान सिखाये, और वह ऐसी बात कहने से बचे जिस कीउसे जानकारी नहीं है, कि ऐसा न हो कि वह दीन से निकल जाए और तकल्लुफ करने वालों मेंसे हो जाये।”

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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