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उसने एक ज़मीन खरीदी ताकि उसे अपनी बेटी की शादी के लिए छोड़ दे तो क्या उसके ऊपर ज़कात अनिवार्य है ॽ

प्रश्न: 153546

मैं ने क़िस्त पर ज़मीन का एक टुकड़ा खरीदा है, और यह इस उद्देश्य से कि मैं उसे अपनी बेटी की शादी के लिए छोड़ दूँ , उसकी क़ीमत बहत्तर हज़ार पाउंड है, उसकी क़ीमत में से मैं ने केवल पचास हज़ार भुगतान किया है, और उसके ऊपर साल गुज़र चुका है, तो क्या भुगतान की हुई राशि पर ज़कात निकालना अनिवार्य है ॽ और उसकी मात्रा क्या है ॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकारकी प्रशंसा औरस्तुति केवल अल्लाहके लिए योग्य है।

सर्वप्रथम :

भुगतानकी गई राशि,और वह पचासहज़ार है, में ज़कातअनिवार्य नहींहै ; क्योंकि ज़कातउस धन में होतीहै जिसका आदमीमालिक होता है,न कि उस धनमें जो उसकी मिल्कियतसे बाहर निकल चुकीहै।

दूसरा:

यदिजमीन के खरीदनेका उद्देश्य उसेअपनी बेटी की शादीके समय बेचना है,तो यह एक ऐसीज़मीन है जोबेचने के लिए तैयारकी गई है, अतः उसमेंतिजारत की ज़कातअनिवार्य है,किंतु यदिआप उसमें निवासके लिए,याकिराये पर देनेके लिए उस पर निर्माणकरने की नीयत रखतेथे, या आप उसे बेचनेया अधिग्रहण करनेके बीच असमंजसमें पड़े थे, तोउसमें व्यापारकी ज़कात अनिवार्यनहीं है।

इस विषयमें बुनियादी सिद्धांतवह हदीस है जिसेअबू दाऊद (हदीससंख्या : 1562) ने समुरहबिन जुंदुब सेरिवायत किया हैकि उन्हों ने कहा: अल्लाह के पैगंबरसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम हमें आदेशदेते थे कि हम जोचीज़ बेचने केलिए तैयार करतेहैं उस से सदक़ा(ज़कात) निकालें।

तथा“फतावा स्थायीसमिति” (9/339) मेंहै : मेरे पास -उदाहरण के तौरपर पचास हज़ार है- और मैं ने उस सेएक ज़मीन खरीदी,और मेरे मन मेंयह बात थी कि बजायइसके कि पैसा बैंकमें पड़ा रहे मैंइसे ज़मीन में लगादेता हूँ ताकिपैसा सुरक्षितहो जाए, और जब उचितसमय आयेगा या मुझेपैसे की आवश्यकताहोगी तो ज़मीन कोबेच दूँगा,अब उसकी क़ीमतबढ़ गई है,तो क्या उसपर ज़कात अनिवार्यहै ॽ

उत्तर: जिसने तिजारतकी नीयत से कोईज़मीन खरीदी,या वह किसी उपहारया ग्रांट के द्वाराउसका मालिक बनाहै तो – उस पर सालगुज़र जाने पर उसमेंज़कात अनिवार्यहै,और हरवर्ष उसकी वह क़ीमतलगायेगा जिसकेबराबर वह ज़कातअनिवार्य होनेके समय पहुँचतीहै, और वह उससे दसवेंहिस्से का एकचौथाई अर्थात2.5 प्रतिशत के बराबरज़कात निकालेगा।

और यदिउसने उसे अपनेलिए निवास बनानेकी नीयत से खरीदाहै तो : उसमें ज़कातअनिवार्य नहींहै, सिवाय इसकेकि वह बाद में उसकीतिजारत करनेकी नीयत करले,तो फिर उसमें ज़कातअनिवार्य होगीजब तिजारत की नीयतकरने के समयसे उस पर साल गुज़रजाए। और यदि उसनेउसे किराये परदेने के लिए खरीदाहै,तो ज़कातउस मज़दूरी (आय) मेंअनिवार्य होगीजिसे उसने बचतकिया है जब वह निसाब(ज़कात अनिवार्यहोने की न्यूनतमसीमा) को पहुँचजाए और उसपर एकसाल गुज़र जाए।”अंत हुआ।

तिजारतकी ज़कात का तरीक़ायह है कि : आप हर सालज़मीन की क़ीमत लगाएंऔर उसकी क़ीमत सेदसवें हिस्से काएक चौथाई हिस्सा(यानी 2.5 प्रतिशत)निकाल दें।

तथाइस बात से सचेतरहें कि तिजारतके सामान यदि सोने,या चाँदी,या नकद (रियाल,डॉलर याइसके अलावा अन्यमुद्राओं),या दूसरे सामानोंसे खरीदे गए हैं,तो उसव्यापारिकसामान का साल उस माल कासाल होगा जिस सेउसे खरीदा गयाहै।

इस आधारपर साल की गिंतीज़मीन खरीदने केसमय से नहीं शुरूहोगी, बल्कि उसकीक़ीमत का मालिकहोने के समयसे शुरू होगी,अर्थात आपके पचासहज़ार का मालिकबबने के समय से।

और यदिसाल गुज़र जाए औरआपके ऊपर कुछ किस्तेंबाक़ी हों तब भीआपके लिए अनिवार्यहै कि इन क़िस्तोंका एतिबार किएबिना ज़मीन की ज़कातनिकालें ;क्योंकि विद्वानोंके सही कथन के अनुसारक़र्ज़ ज़कात को प्रभावितनहीं करता है,और यही इमामशाफई रहिमहुल्लाहका मत है। तथा देखें: अल-मजमूअ (5/317),निहायतुल मुहताज(3/133).

शैखइब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाहने फरमाया : “जिसबात को मैं राजेह(सही) ठहराता हूँवह यह है कि सामान्यरूप से ज़कात अनिवार्यहै,भलेही उसके ऊपर क़र्जबाक़ी हो जो निसाबमें कमी पैदाकरता हो,सिवाय इसके किऐसा क़र्ज़ हो जोज़कात का समय आनेसे पहले अनिवार्यहो तो ऐसी स्थितिमें ज़कात को अदाकरना ज़रूरी है,फिर उसके बाद(यानी क़र्ज़चुकाने केबाद) जो कुछ बाक़ीबचे उसकी ज़कातअदा करे।”

“अश-शर्हुलमुम्ते” (6/39) सेअंत हुआ।

अधिकलाभ के लिए प्रश्नसंख्या (146611), (67594), (32715).

और अल्लाहतआला ही सर्वश्रेष्ठज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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