राफिज़ा (शिया) के इतिहास के प्रति आपके ज्ञान के माध्यम से, अहले सुन्नत और उन के बीच मैत्री और निकटता पैदा करने के सिद्धांत के बारे में आपका क्या रुख है?
सुन्नियों और शियाओं के बीच मैत्री संभव नहीं है
प्रश्न: 118101
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
उत्तर :
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
”राफिज़ा और अह्ले सुन्नत के बीच मैत्री और मेल-मिलाप संभव नहीं है ; क्योंकि अक़ीदा (आस्था) विभिन्न है, चुनांचे अह्ले सुननत व जमाअत का अक़ीदा (मूल सिद्धांत) अल्लाह की तौहीद (एकेश्वरवाद), और इबादत (पूजा व उपासना) को एकमात्र अल्लाह के लिए विशिष्ट करना है, और यह कि उसके साथ किसी को भी न पुकारा जाए, न किसी निकटवर्ती फरिश्ते को, न किसी भेजे हुए सन्देष्टा को, और यह कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ही केवल परोक्ष चीज़ों का ज्ञान रखता है। तथा अह्ले सुन्नत के अक़ीदा में से सभी सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से महब्बत करना, उनके लिए अल्लाह की प्रसन्नता की दुआ करना (अर्थात उनका नाम आने पर रज़ियल्लाहु अन्हुम कहना), तथा यह आस्था रखना है कि वे पैगंबरों के बाद सबसे बेहतर लोग हैं, और यह कि उनमें सबसे प्रतिष्ठावान अबू बक्र सिद्दीक़, फिर उमर, फिर उसमान, फिर अली रज़ियल्लाहु अन्हुम अजमईन हैं। जबकि राफिज़ा का अक़ीदा इसके विपरीत और विरूद्ध है। इसलिए दोनो के बीच गठबंधन और मेल-मिलाप संभव नहीं है। जिस तरह कि यहूदियों, ईसाइयों, मूर्तिपूजको के बीच और अह्ले सुन्नत के बीच मेल-मिलाप संभव नहीं है, तो उसी तरह राफिज़ा के बीच और अह्ले सुन्नत के बीच भी मैत्री और मेल-मिलाप संभव नहीं है क्योंकि अक़ीदे की वह विभिन्नता पाई जाती है जिसको हम ने स्पष्ट किया है।” अंत हुआ।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर