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तस्बीह के शब्द “सुब्हानल्लाह व बि-हम्दिही” का अर्थ

प्रश्न: 104047

शब्द "सुब्हानल्लाह व बि-हम्दिही" और शब्द "बिस्मिल्लाह" का क्या अर्थ हैॽ मैं इस की व्याख्या  जानना चाहता हूँ, क्योंकि नमाज़ में मुझे इस की अवशयकता पड़ती है।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

तस्बीह क शब्द "सुब्हानल्लाह" तौहीद (एकेश्वरवाद) के सिद्धांतों में से एक महान सिद्धांत और अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल पर ईमान के स्तंभों में से एक बुनियादी स्तंभ को शामिल है। और वह अल्लाह सुब्हानहु व तआला को बुराई, कमी, भ्रष्ट भ्रमों तथा झूठे विचारों से पवित्र ठहराना है।

अरबी भाषा में इसका मूल शब्द इस अर्थ को इंगित करता है। चुनाँचे यह "अस्सब्ह" से लिया गया है जिस का अर्थ दूरी के हैं।

महान ज्ञानी इब्ने फारिस कहते हैं : "अरब बोलते हैं : ''सुब्हाना मिन कज़ा'' अर्थात यह कितना दूर है। अल-आशा का कथन है :

سُبحانَ مِنْ علقمةَ الفاخِر أقولُ لمّا جاءني فخرُهُ

गर्व करनेवाले अलक़मा से यह बात बहुत दूर है (अर्थात उसके लिए गर्व करना बहुत दूर का बात है) यह मैंने उस समय तहा जब मैंने उसके गर्व के बारे में सुना।

कुछ लोगों का कहना है : इसका मतलब यह है कि गर्व करना उसके लिए बहुत आश्चर्य की बात है। और यह उस (पहले) अर्थ के क़रीब है क्योंकि उसका मतलब उसे घमंड (गर्व) से दूर करना है।" (मोजम मक़ाईसुल-लुगह (3/96).

तो अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की तस्बीह का मतलब, दिलों और विचारों को इस बात से दूर करना है कि वे अल्लाह के बारे में कमी का गुमान करें या उसकी ओर बुराई की निस्बत करें। तथा अल्लाह को हर उस ऐब व बुराई से पाक करना जिसे मुश्रेकीन (अनेकेशवरवादियों) और मुलहिदीन (नास्तिकों) ने अल्लाह की तरफ मन्सूब किया है।

इसी अर्थ में क़ुरआन का संदर्भ भी आया है :

अल्लाह तआला ने फरमाया :

 مَا اتَّخَذَ اللَّهُ مِنْ وَلَدٍ وَمَا كَانَ مَعَهُ مِنْ إِلَهٍ إِذًا لَذَهَبَ كُلُّ إِلَهٍ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ

 المؤمنون/91

''अल्लाह ने अपना कोई बेटा नहीं बनाया और न उसके साथ कोई अन्य पूज्य है। ऐसा होता तो प्रत्येक पूज्य अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और उनमें से एक दूसरे पर चढ़ाई कर देता। महान और सर्वोच्च है अल्लाह उन बातों से, जो वे बयान करते हैं।'' (सूरतुल-मोमिनून : 91(

وَجَعَلُوا بَيْنَهُ وَبَيْنَ الْجِنَّةِ نَسَبًا وَلَقَدْ عَلِمَتِ الْجِنَّةُ إِنَّهُمْ لَمُحْضَرُونَ . سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ

الصافات/158-159

''उन्होंने अल्लाह और जिन्नों के बीच नाता जोड़ रखा है, हालाँकि जिन्नों को भली-भाँति मालूम है कि वे अवश्य पकड़कर हाज़िर किए जाएँगे। महान और सर्वोच्च है अल्लाह उस से, जो वे बयान करते हैं।'' (सूरतुस-साफ्फात : 158-159) .

هُوَ اللَّهُ الَّذِي لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْمَلِكُ الْقُدُّوسُ السَّلَامُ الْمُؤْمِنُ الْمُهَيْمِنُ الْعَزِيزُ الْجَبَّارُ الْمُتَكَبِّرُ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يُشْرِكُونَ 
الحشر/23

''वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं। बादशाह है, अत्यन्त पवित्र, सर्वथा सलामती, निश्चिन्तता प्रदान करने वाला, संरक्षक, प्रभुत्वशाली, प्रभावशाली (टूटे हुए को जोड़नेवाला), अपनी बड़ाई प्रकट करनेवाला। महान और उच्च है अल्लाह उस शिर्क से जो वे करते हैं।'' (सूरतुल – हश्र :23).

और इसी अर्थ में वह हदीस भी है जिसे इमाम अहमद ने अपनी "मुस्नद" (5/384) में हुज़ैफा रज़ियल्लाहु अन्हु से – नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की रात की नमाज़ में क़ुरआन पढ़ने के विवरण में – रिवायत किया है, वह कहते हैं : (जब आप अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की पाकी बयान करने वाली आयत से गुज़रते तो उसकी तस्बीह बयान करते।) इस हदीस को शैख अल्बानी ने "सहीहुल जामे" (4782) में सही कहा है, और मुस्नद के अन्वेषकों ने भी इसे सही कहा है।

इस शब्द की व्याख्या में इमाम तबरानी ने अपनी पुस्तक "अद्दुआ" में कई हदीसों को रिवायत किया है, उन्होंने इन्हें अध्यायः "तस्बीह की व्याख्या" (पृष्ठ संख्या : 498 – 500) में एकत्रित किया है, उसी में है :

इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से उल्लिखित है :

"सुब्हानल्लाह" का अभिप्राय अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल को हर बुराई से पाक करना है।

यज़ीद बिन असम्म से रिवायत है, वह कहते हैं :

एक आदमी इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा के पास आया और कहने लगा :

"ला इलाहा इल्लल्लाह" का अर्थ हम समझते हैं कि : अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है। और "अल्हमदु लिल्लाह" का अर्थ हम समझते हैं कि : हर प्रकार की नेमतें अल्लाह की ओर से हैं, और उनपर उसी की प्रशंसा की जाती है। तथा "अल्लाहु अक्बर" का अर्थ हम समझते हैं कि : कोई भी चीज़ उससे बड़ी नहीं है। तो "सुब्हानल्लाह" का क्या अर्थ हैॽ

आप ने बताया : यह ऐसा शब्द है जिसे अल्लाह ने अपने लिए पसंद फरमाया है और अपने स्वर्गदूतों को इसका हुक्म दिया है तथा इसी के द्वारा अपनी मख़लूक़ में से अच्छे लोगों की फरियाद रसी करता है।

अब्दुल्लाह बिन बुरैदा बयान करते हैं कि एक आदमी ने अली रज़ियल्लाहु अन्हु से "सुब्हानल्लाह" के सम्बन्ध में सवाल किया तो आप ने फरमाया :

अल्लाह के गौरव की महानता।

मुजाहिद कहते हैं :

तस्बीह का अर्थ है : अल्लाह को हर बुराई से दूर करना।

मैमून बिन मेहरान कहते हैं :

"सुब्हानल्लाह" अल्लाह की महानता, यह ऐसी संज्ञा है जिससे अल्लाह की महानता बयान की जाती है।

हसन कहते हैं :

"सुब्हानल्लाह" एक वर्जित नाम (संज्ञा) है जिसे मानव में से कोई भी अपनाने की क्षमता नहीं रखता।

अबू उबैदा मअ़मर बिन मुसन्ना से रिवायत है :

"सुब्हानल्लाह" : अल्लाह को पवित्र ठहराना और उसे बुराई से दूर करना है।

तबरानी कहते हैं : हम से फज़्ल बिन हुबाब ने बयान किया, वह कहते हैं कि मैं ने इब्ने आयशा को कहते हुए सुना :

अरब जब किसी चीज़ का इन्कार करते हुए उसे बड़ा क़रार देते हैं तो कहते हैं : "सुब्हाना", गोया कि वे अल्लाह को हर उस बुराई से पाक क़रार देते हैं जो उस के लिए उचित नहीं है, और इस से अल्लाह की पाकी मुराद है।

शैख़ुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह कहते हैं :

"और अल्लाह की तस्बीह का हुक्म इस बात का तक़ाज़ा करता है कि अल्लाह को हर ऐब व बुराई से पाक ठहराया जाए और उसके लिए कामिल सिफात (परिपूर्ण गुण, विशेषताऐं) साबित किए जाएं, क्योंकि तस्बीह पाकी बयान करने और महानता का वर्णन करने की अपेक्षा करता है, और महानता का वर्णन करने के लिए प्रशंसनीय विशेषणों को साबित करना अनिवार्य है, अतः इस प्रकार तस्बीह अल्लाह की पाकी बयान करने, उसकी प्रशंसा करने, उसकी महानता का वर्णन करने तथा उसकी तौहीद (एकेश्वरवाद) की अपेक्षा करता है।" ''मजमूउल फतावा'' (16/125).

द्वितीय :

रहा "व बि-हम्दिही" का अर्थ तो – संक्षेप में – इसका मतलब तस्बीह और हम्द को एक साथ करना है, या तो हाल की शैली में या अत्फ की शैली में। और उसका संपूर्ण रूप (वाक्य) इस प्रकार होगा : मैं अल्लाह तआला की पाकी बयान करता हूँ इस हाल में कि मैं उसकी प्रशंसा कर रहा होता हूँ, या मैं अल्लाह तआला की पाकी बयान करता हूँ और उस की प्रशंसा करता हूँ।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह कहते हैं :

हदीस का शब्दः ''व-बिहम्दिही'' के बारे में कहा गया है कि : वाव (व) हाल के लिए है और संपूर्ण वाक्य यह है : मैं अल्लाह की पाकी बयान करता हूँ उसकी प्रशंसा के साथ उसके तौफीक़ प्रदान करने के कारण।

और यह भी कहा गया है कि : वाव (व) अत्फ़ करने के लिए है और संपूर्ण वाक्य यह है : मैं अल्लाह की पाकी बयान करता हूँ और उसकी प्रशंसा करता हूँ।

यह भी संभव है कि "बि-हम्दिही" की "ब" अपने से पहले महज़ूफ से संबंधित हो और पोशीदा वाक्य इस प्रकार हो : मैं अल्लाह की स्तुति के साथ उस की प्रशंसा करता हूँ। इस तरह "सुब्हानल्लाह" एक स्थायी वाक्य है और "व बि-हम्दिही" एक अन्य वाक्य है।

इमाम ख़त्ताबी हदीस : (सुब्हानका अल्लाहुम्मा रब्बना व बि-हम्दिका) के बारे में कहते हैं : तेरी शक्ति के साथ जो कि एक ऐसी नेमत है जो मेरे ऊपर तेरी प्रशंसा को अनिवार्य करती है, मैं तेरी पाकी बयान करता हूँ, न कि अपनी शक्ति व क्षमता के साथ। गोया कि उनका मतलब यह है कि वह उन शैलियों में से है जिसमें कारण को कारक के स्थान पर कर दिया गया है।" अंत हुआ।

''फत्हुल-बारी'' (13/541), और देखिए : इब्ने अस़ीर की "अन्निहाया फी ग़रीबिल-हदीस़" (1/457)

तृतीय :

रहा बस्मला "बिस्मिल्लाह" के अर्थ के बारे में सवाल तो इसकी व्याख्या और स्पष्टीकरण प्रश्न संख्या : (21722) के उत्तर में गुज़र चुकी है।

और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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