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विद्यार्थी के शिष्टाचार

प्रश्न: 10324

अल्लाह ने मुझ पर यह उपकार किया है कि मैं ज्ञान प्राप्त कर रहा हूँ। अतः वे कौन से आदाब (शिष्टाचार) हैं जिनसे सुसज्जित होने के लिए आप मुझे सलाह देते हैं?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

निःसंदेह ज्ञान प्राप्त करने के कुछ शिष्टाचार (आदाब) हैं जिनसे ज्ञान प्राप्त करने वाले को सुसज्जित होना चाहिए। अतः ज्ञान प्राप्त करने के संबंध में आपके लिए ये कुछ सलाह और शिष्टाचार हैं, शायद इसके द्वारा अल्लाह आपको लाभ पहुँचाए :

सर्व प्रथम : धैर्य (सब्र) :

मेरे प्रिय भाई! ज्ञान प्राप्त करना सर्वोच्च व्यवसायों में से एक है। और ऊंचाइयों को कड़ी मेहनत ही से प्राप्त किया जा सकता है। कवि अबू तम्माम खुद को संबोधित करते हुए कहता है :

(कविता का भावर्थ : मुझे उन ऊंचाइयों को प्राप्त करने दे जिन्हें प्राप्त नहीं किया जा सकता, ऊंचाई व बुलन्दी कठिनाई का प्रारूप है, इसलिए इसकी प्राप्ती में कठिनता ही कठिनता है तथा आसान और कमतर चीजों को प्राप्त करना आसान व सरल है।

तू ऊंचाइयों को बिना किसी प्रयास के आसानी से प्राप्त करना चाहती है जबकि शहद पाने के लिए मधुमक्खियों का डंक सहना ज़रूरी है। अर्थात ऊंचा स्थान पाने के लिए कष्ट सहना आवश्यक है।)

और एक दूसरा कवि कहता है :

(कविता का भावर्थ : तू महिमा प्राप्त करने के लिए धीरे-धीरे चल रहा है, जबकि दूसरे लोग उसके लिए दौड़कर जानेवाले हैं। तथा उन्हों ने भरपूर प्रयास किया है और महिमा के पीछे अपनी पूरी शक्ति लगा दी है।

उन्होंने महिमा के लिए कठिनाइयों का सहन किया, यहाँ तक कि उनमें से अधिकतर ने अपना साहस खो दिया, परन्तु जिसने भरपूर प्रयास किया और धैर्य से काम लिया उसने महिमा को प्राप्त कर लिया।

महिमा कोई खजूर नहीं है कि जिसे तू खाले, याद रख जब तक कि तू “एलोवेरा” (एक कड़वी दवा) नहीं चखेगा अर्थात मुसीबत नहीं उठाएगा, महिमा को नहीं पा सकता है।)

अतः धैर्य रखो और बढ़-चढ़कर धैर्य दिखाओ, यदि जिहाद एक घंटे का धैर्य है तो विद्यार्थी का धैर्य जीवन के अंत तक होता है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اصْبِرُوا وَصَابِرُوا وَرَابِطُوا وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ(200) [سورة آل عمران]

''ऐ ईमान लाने वालो! धैर्य से काम लो और (मुक़ाबिले में) बढ़-चढ़कर धैर्य दिखाओ और जुटे तथा डटे रहो और अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम सफल हो सको।'' (सूरत आल-इमरान : 200).

द्वितीय : कार्य में निष्ठा औऱ ईमानदारी:

आप अपने काम में निष्ठा एवं ईमानदारी अपनाएं। आपका उद्देश्य अल्लाह की प्रसन्नता और आख़िरत (परलोक) का घर हो। तथा आप दिखावा व पाखंड तथा प्रदर्शित होने और साथियों पर अहंकार करने से बचें। क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : (जो व्यक्ति विद्वानों से बहस करने, मूर्खों से झगड़ा करने तथा लोगों का ध्यान अपनी तरफ फेरने के लिए ज्ञान प्राप्त करे तो अल्लाह उसे आग (अर्थात नरक) में दाखिल करेगा।) इस हदीस को तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2654) ने रिवायत किया है और शैख अल्बानी ने “सहीह तिर्मिज़ी” में इसे “हसन” क़रार दिया है।

सारांश यह है कि : आप अपने ज़ाहिर एवं बातिन (प्रोक्ष और प्रत्यक्ष) को सभी प्रकार के बड़े एवं छूटे पापों से पवित्र और शुद्ध रखें।

तीसरा : ज्ञान के अनुसार कार्य करना :

आप जान लें कि ज्ञान के अनुसार कार्य करना ज्ञान का फल है। अतः जो व्यक्ति ज्ञान रखने के बावजूद उसके अनुसार कार्य न करे, तो वह उन यहोदियों की तरह है जिनकी अल्लाह ने अपनी किताब में बहुत बुरी मिसाल दी है। अल्लाह ने फरमाया :

مَثَلُ الَّذِينَ حُمِّلُوا التَّوْرَاةَ ثُمَّ لَمْ يَحْمِلُوهَا كَمَثَلِ الْحِمَارِ يَحْمِلُ أَسْفَارًا بِئْسَ مَثَلُ الْقَوْمِ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللَّهِ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ(5) سورة الجمعة

''जिन लोगों पर तौरात का भार डाला गया किन्तु उन्होंने उसे न उठाया (अर्थात तदानुसार कर्म नहीं किया) उनकी मिसाल उस गधे की सी है जो पुस्तकें लादे हुए हो, बहुत ही बुरी मिसाल है उन लोगों की जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठला दिया, अल्लाह अत्याचारियों को सीधा मार्ग नहीं दिखाया करता।'' (सूरतुल-जुमुआ़ : 05).

और जो व्यक्ति बिना ज्ञान के कार्य करे, तो वह ईसाइयों के समान है, और ये वही पथ-भ्रष्ट (भटके हुए) लोग हैं जिनका सूरतुल बक़रह में उल्लेख किया गया है।

रही बात उन पुस्तकों की जिन का आपको अध्ययन करना चाहिए तो उनके संबंध में प्रश्न संख्या : (20191) में उल्लेख किया गया है। कृपया उस प्रश्न को देखें क्योंकि यह महत्वपूर्ण है।

चौथा : सदैव इस बात को ध्यान में रखना कि अल्लाह देख रहा है :

आपको हमेशा जागरूक होना चाहिए कि अल्लाह आपको गुप्त और खुले हर स्थिति में देख रहा है। आप अपने पालनहार की ओर भय और आशा के बीच की स्थिति में अग्रसर हों। क्योंकि ये दोनों एक मुसलमान के लिए पक्षी के दो पंखों के समान हैं। (अतः मुसलमान को हमेशा भय और आशा के बीच संतुलित होना चाहिए)। आप सर्वथा अल्लाह की ओर ध्यान गम्न हों. और आपका दिल उसकी महब्बत से भरा होना चाहिए, आपकी ज़ुबान अल्लाह के ज़िक्र (जाप) से परिपूर्ण हो, और अल्लाह सुब्हानहु व तआला के प्रावधानों तथा हिक्मतों से आनन्दित और हर्षित हो।

तथा अपने सज्दों में अल्लाह से अधिक दुआ करें कि अल्लाह आप पर ज्ञान के द्वार खोल दे और आपको लाभदायक ज्ञान प्रदान करे। क्योंकि यदि आप अल्लाह के साथ सत्यनिष्ठा से काम लेते हैं तो अल्लाह आपको तौफीक़ देगा, आपकी मदद करेगा और आपको अल्लाह वाले विद्वानों में से बनाएगा।

पांचवां : समय का सबसे अच्छा उपयोग करना :

ऐ बुद्धिमान!…. आप अपनी जवानी तथा अपने जीवन काल को ज्ञान सीखने में लगाएँ, टाल-मटोल और विलंब के छल से धोका न खायें, क्योंकि आपके जीवन का जो समय भी बीत जाता है उसका कोई विकल्प और बदल नहीं है। ध्यान भंग करने वाले संबंधों तथा पूर्ण रूप से ज्ञान प्राप्त करने से रोकने वाली बाधाओं से यथाशक्ति संबंध काट लें, उनसे कोई संबंध न रखें और ज्ञान की प्राप्ति में पूरी कोशिश, प्रयास और गंभीरता से काम लें, क्योंकि निःसंदेह ये लुटेरों के समान हैं। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने परिवार से दूर रहने और देश से दूरी बनाने को पसंद किया है; क्योंकि सोच जब बंट जाती है तो व्यक्ति तथ्यों के बोध और सूक्ष्म मुद्दों की अस्पष्टता को समझने में विफल रहता है। इसलिए कि अल्लाह ने किसी व्यक्ति के सीने में दो दिल नहीं रखा है। इसी प्रकार कहा जाता है कि ज्ञान आपको अपना कुछ हिस्सा भी नहीं देगा जब तक कि आप उसे अपना सब कुछ न दे दें।

जब तुम ज्ञान की राह में अपना सब कुछ क़ुर्बान कर दोगे तब कहीं तुम्हें ज्ञान का कुछ हिस्सा प्राप्त होगा।

छठा : चेतावनी :

आप ज्ञान प्राप्त करने की शुरूआत में विद्वानों के बीच या सामान्य रूप से लोगों के बीच पाए जाने वाले मतभेदों में व्यस्त होने से बचें। इसलिए कि यह मन को चकरा देगा और बुद्धि को चकित कर देगा। इसी प्रकार भारी भरकम पुस्तकों का अध्ययन करने से सावधान रहें क्योंकि यह आपके समय बर्बाद कर देगा है और आपके मन को अस्त व्यस्त कर देगा। बल्कि आप जिस किताब को पढ़ रहे हैं या जिस विषय का अध्ययन कर रहे हैं उसी को अपना पूरा समय दें यहाँ तक कि आपको उसमें महारत हासिल हो जाए। तथा अकारण एक पुस्तक से (उसका पूर्ण रूप से अध्ययन करने से पूर्व) दूसरी पुस्तक की ओर स्थानान्तरित होने से सावधान रहें; क्योंकि यह ऊब (बोरियत) और विफलता का संकेत है। तथा आप को चाहिए कि आप ज्ञान की प्रत्येक शाखा में से सबसे महत्वपूर्ण फिर महत्वपूर्ण ज्ञान पर ध्यान दें।

सातवाँ :

अच्छी तरह से याद करना और सुरक्षित रखना :

आप जो कुछ याद करना चाहते हैं उसे अच्छी तरह से सत्यापित करने के इच्छुक बनें; चाहे किसी अध्यापक से हो या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जो उसमें आपकी मदद कर सकता हो। फिर आप उसे ठीक से याद कर लें और लगातार उसे दोहराएँ तथा प्रत्येक दिन विशिष्ट समय पर उसे दोहराते रहें, ताकि ऐसा न हो कि आप याद की हुई चीज़ भूल जाएं।

आठवाँ : पुस्तकों का अध्ययन करना :

जब आप संक्षिप्त पुस्तकों को याद कर लें, और उनकी व्याख्या के साथ उनमें महारत हासिल कर लें और उसमें मौजूद कठिन परिच्छेद तथा महत्वपूर्ण लाभदायक बातों को अच्छी तरह समझ लें, तो इसके बाद विस्तृत पुस्तकों की ओर स्थानान्तरित हों और सदैव उसका अध्ययन करें। तथा अध्ययन के दौरान, ज्ञान की सभी शाखाओं में आप जिन उपयोगी बातों, सूक्ष्म मसायल (मुद्दों), विचित्र बातों, समस्याओं के समाधान और समान चीज़ों के प्रावधानों के बीच अंतर से गुज़रें तो आप उन्हें नोट कर लिया करें। तथा आप कोई लाभदायक बात सुनते हैं या कोई मौलिक नियम (सिद्धांत) समझते हैं तो आप इसी पर निर्भर न रहें, बल्कि उसे नोट करने और उसे याद करने में जल्दी करें।

शिक्षा प्राप्त करने में आपका महत्वाकांक्षा ऊँचा होना चाहिए; अतः अधिक शिक्षा पाने की संभावना के होते हुए थोड़े से ज्ञान पर संतुष्ट न हों, और संदेष्टाओं की विरासत में से थोड़े से हिस्से पर संतोष न करें, जिस उपयोगी बात को प्राप्त करने में आप सक्षम हों उसके सीखने में आप देर न करें और न ही टाल-मटोल तथा विलंब से काम लें क्योंकि देर करना आपदाएं लाने का कारण है। और इसलिए कि यदि आप उसे वर्तमान समय में प्राप्त कर लेते हैं तो आने वाले दूसरे समय में कुछ अन्य ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

बेरोजगारी के लक्षणों या सत्ता की बाधाओं से पहले, अपने खाली समय, अपनी सक्रियता, अपने स्वास्थ के समय, अपनी किशोरावस्था, अपने दिमाग़ की ताज़गी और अपनी कम व्यस्तता का अधिकतम लाभ उठाएं।

आपके लिए उचित है कि अपनी आवश्यकतानुसार जितना हो सके किताबों को संग्रह करें; क्योंकि ये ज्ञान प्राप्त करने के उपकरण हैं। परंतु (बिना लाभ के) अधिक से अधिक किताबें प्राप्त करने को ज्ञान से अपना हिस्सा न बनाएं तथा किताबें संग्रह करने को समझ से अपना हिस्सा न बनाएं, बल्कि आपको चाहिए कि किताबों से अपनी यथाशक्ति लाभ उठाएँ।

नौवां : साथी चुनना :

आप नेक एवं धार्मिक दोस्त चुनने का प्रयास करें, जो ज्ञान की तलाश में व्यस्त हो, अच्छे स्वभाव वाला हो, आपके उद्देश्य को प्राप्त करने में आपकी सहायता कर सकता हो, आपके पहले से प्राप्त किए हुए लाभों को परिपूर्ण करने में आपका सहयोग कर सकता हो, आपको अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करे, आपकी बोरियत और उकताहट को दूर कर सके, जो अपनी धार्मिकता, ईमानदारी तथा शिष्टाचार में विश्वसनीय हो, तथा वह अल्लाह के प्रति शुभचिंतक हो, खिलवाड़ करनेवाला न हो।'' देखिए : इब्ने जमाअह की पुस्तक “तज़्किरतुस्-सामिअ़”।

''तथा बुरे साथी से सावधान रहें; क्योंकि बुरा दोस्त अपनी बुराई से आपको प्रभावित कर सकता है, इसलिए कि प्रकृति और स्वभाव एक दूसरे से प्रभावित होती हैं और लोग पंक्षियों के झुंड़ के समान हैं जो एक दूसरे की समानता व छवि अपनाने की प्रकृति के साथ पैदा किए गए हैं। अतः इस तरह के लोगों के साथ मिश्रण करने से सावधान रहें, क्योंकि यह एक बीमारी है, और उपचार से बचाव ज़्यादा आसान है।

दसवा और अंतिम : अध्यापक के साथ अच्छा व्यवहार करना :

चूंकि आरंभतः ज्ञान पुस्तकों से नहीं लिया जाता है, बल्कि एक गुरू (अध्यापक) का होना अनिवार्य है जिसके पास आप ज्ञान प्राप्ति की कुंजियों (प्रमुख सूत्रों) में महारत हासिल कर सकें, ताकि आप त्रुटियों से सुरक्षित रहें। इसलिए आप के लिए अनिवार्य है कि आप उनके साथ अदब (शिष्टता) से पेश आएँ। क्योंकि यह सफलता, कामयाबी, ज्ञान प्राप्ति ताथा तौफीक़ का शीर्षक है। इसलिए आपके गुरू आपकी ओर से आदर, सम्मान, विनम्रता के योग्य हैं। अतः आप अपने अध्यापक के साथ बैठने और उनसे बात-चीत करने में शिष्टाचार के सर्वोच्च मानक का प्रदर्शन करें, अच्छे ढंग से प्रश्न पूछें, ध्यान से उनकी बातें सुनें, उनके सामने पुस्तक का अध्ययन करते समय शिष्टाचार का पालन करें, घमंड व अहंकार और उनके

सामने बहस करने से उपेक्षा करें, उनके साथ वार्तालाप करने में पहल न करें या उनके आगे न चलें या उनके पास बहुत अधिक न बोलें, या उनकी बात-चीत और शिक्षण के दौरान अपनी बात के द्वारा उन्हें बाधित न करें या उन्हें उत्तर देने के लिए आग्रह न करें, उनसे बहुत ज़्यादा सवाल करने से बचें विशेष रूप से अन्य लोगों के सामने; क्योंकि यह आपके लिए घमंड और उनके लिए ऊब का कारण होगा। उन्हें सीधे उनके नाम या उपनाम द्वारा न बुलाएं बल्कि उन्हें “मेरे गुरू जी” या “ऐ हमारे गुरू जी” कह कर बुलाएं।

यदि आपको लगता है कि गुरू से ग़लती या भूल हो रही है फिर भी आप उन्हें अपनी नज़रों से न गिराएं अर्थात उनके सम्मान में कमी न आने दें क्योंकि ऐसा करना आपके उनके ज्ञान से वंचित होने का कारण बनेगा। और कौन है जो त्रुति से पूरी तरह सुरक्षित है?” देखिए : शैख़ बक्र अबू ज़ैद की पुस्तक “हिल्यतो तालिबिल-इल्म”।

हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह हमें और आपको तौफीक़ तथा स्थिरता प्रदान करे, और हमें वह दिन दिखाए जब आप मुसलमानों के विद्वानों में से एक विद्वान, अल्लाह के धर्म के विषय में एक स्रोत और अल्लाह का डर रखने वालों के इमामों में से एक इमाम होंगे। आमीन (अल्लाह स्वीकार फरमाए) . . आमीन (अल्लाह स्वीकार फरमाए) . . जल्द ही मिलने की आशा करते हैं। वस्सलाम

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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